अनोखे चेहरे विदर्भा के
क्षितिज की छोर तलक हरयाली की भरमार
लहलहाते हुए खेत, हरे-हरे पेड़ चारो ओर
विदर्भा का यह सौंदर्य रूप, मन को मोह लेती है
आखिर क्यों विदर्भा इस सौंदर्य से वंचित होकर
जाना जाता है किसानो की आत्महत्या के लिए?
क्यों किसानो की विधवाहो वः बच्चों
का दर्द सुनाई देती है इन लहलहाते हुए खेतों से?
सवाल पर सवाल उमड़ पडतें हैं दर्दे दिल में मेरे...
अश्रु छलक जाते हैं विधवाहो की कहानी सुनकर
यह जानकार की छोटी रौशनी को
अपने पिता तक की छवि याद नहीं है अभी
पिता ने जब आत्महत्या की मज़बूरी में
तब रौशनी मात्र तीन साल की नन्ही कलि थी
क्यों यह भयानक तांडव विदर्भा से लुप्त
नहीं हो जाती हमेशा-हमेशा के लिए?
ताकि विदर्भा की सुन्दरता विश्व विख्यात हो
जहाँ लहलहाते हुए हरे-हरे खेत क्षितिज का सौंदर्य बढ़ाते हैं...
२९ अगस्त २०१०
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