Friday, October 29, 2010

मृत्यु का तांडव

मृत्यु का तांडव तो चारो ओर हो रहा है
फिर मेरा ही दिल क्यों रोता है?
जब कभी अकबार के पन्नो पर 
किसान की आत्महत्या की खबर छपती है
क्यों ये भावुक दिल अह्सहाय महसूस करता है?
नींद आँखों से दूर हो जाती है क्यों?
भूख लुप्त हो जाता है, न जाने कहाँ?
असमंजस ये दिल बस अश्रु बहाए जाते हैं...
एक शून्य सा छा जाता है मेरी ही दुनिया में...क्यों?

दुनिया मगर बेखबर चलती रहती है
मशगुल लोग भाव विभोर हो कर 
लुफ्त लेते हैं ज़िन्दगी का
जायका खुशबू भरे पकवानों का
 भाता है हर किसी को 
हर दाना मगर किसानो के खून से बस कराह के रह जाती है
बेखबर दुनिया को मगर फुर्सत ही कहाँ
इन् कराह की आवाज़ को वे सुने
उन्हें तो बस चिंता है कि
शुक्रवार को कौन सा नया फिल्म लगनेवाला है
दया आती है दुनिया को देख कर मुझे 
एक मुस्कान असमंजस ही होटों पर छलक आती है 
क्या करूँ कोई बताएगा मुझे?

१२ अक्टूबर २०१० 




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