Sunday, September 26, 2010

हाय ये छोटा प्यारा सा दिल! (26th September 2010, 1645 Hrs)

'क्या आप लोखंडवाला चलेंगे चच्चा?'
उन्होंने आश्चर्य से देखा मुझे और कहा,
'ज़रूर चलेंगे साहब!'
'मैंने पूच्छा क्या बात है चच्चा?'
जवाब कुछ इस तरह मिला मुझे - 
'साहब पिच्छ्ले चालीस सालों से ऑटो चला रहा हूँ मैं
आप पहले शक्श हैं जिन्होंने इतने अदब से पूच्छा मुझसे
सुनकर बहुत अच्छा लगा साहब'
चालीस साल से आदत हो गयी है सुनकर -
ऐ ऑटोवाले, ओये, वगेरह-वगेरह'   
सफ़र के शुरू होते ही
जबान अपने आप उर्दू बोलने लगी मेरी 
'माशा अल्लाह आप तो उर्दू बहुत बेहतरीन बोल लेतें हैं साहब'
मैं मुस्कुराया और चच्चा से कहा,
'काफी सारी जबान जानता हूँ मैं चच्चा
भाषा तो सारी दीवार गिरा देती हैं लोगों के दरमियान'
एक पल ऐसा लगा मुझे जैसे हम दोनों बरसो के बिछड़े हुए 
आज इत्तेफाक से मिल गएं हैं
बातों-बातों में हम दुनिया की चर्चा करने लगे
अच्छा लग रहा था चच्चा से गुफ्तगू करते हुए
चच्चा ने कहा, 'छोटी मुह और बड़ी बात न हो जाये साहब
एक बात आपसे कहना चाहूँगा मैं'
'मैंने कहा बोलिए न चच्चा' 
'इंसान ने जब लोहे पे काम किया तो 
बड़ी-बड़ी जहाज बना डाली
जो पानी में तैरते है और हवा में भी उड़ते हैं
जब पत्थरों पे काम किया तो
ताजमहल जैसा मकबरा और न जाने क्या-क्या बना डाला
लकड़ी पे काम किया तो कुर्सी, मेज, घर बना डाले 
साहब मेरा बड़ा लड़का कंप्यूटर इंजिनियर है
कहता है अब्बा 
आज कल तो एक चुटकी में सारी की सारी खबर सामने आ जाती हैं
हैरान हूँ साहब इंसान की कामयाबी से 
एक छोटा सा प्यारा सा दिल अल्लाह ताला ने इंसान को दिया
जिसे आज कल डॉक्टर लोग बदल भी देते हैं मगर
इस छोटे से दिल पे इंसान ने कभी काम नहीं किया
इसीलिए तो इतना हाहाकार मचा हुआ है चारो ओर'
ज़िन्दगी में मुझे इतना बड़ा झटका कभी नहीं लगा था
चच्चा की इस बात से मैं तो बैठे-बैठे हिल गया 
'वाह चच्चा क्या पते की बात कही आपने
दिल खुश हो गया!'
गद्गद हो चुका था मैं 
'कभी सोचा ही नहीं इस बात पर मैंने
शुक्रिया चच्चा मेरी आँखें खोलने के लिए
याद रहेगा यह सफ़र ज़िन्दगी का मुझे हर पल'
चच्चा ने मुस्कुराते हुए कहा,
'आदमी आप भी काफी दिलचस्प हैं जनाब
बहुत अच्छा लगा आप  से बात करके'
लोखंडवाला आ चुका था
मैंने चच्चा का किराया अदा किया और रुखसत हुआ
चच्चा ने पैसे लिए और कहा,
'अल्लाह ने चाहा तो दोबारा मुलाक़ात होगी साहब'
चच्चा को खुदा हफीज कहा और ज्यूँ ही मैं मुड़ा
तो पाया ऑटो तो भीड़ में गुम हो चुकी थी
मैं बहुत पछताया, 
क्योंकि मैंने चच्चा का नाम और पता नहीं पूच्छा 
उम्र का लिहाज कर मैंने तो सिर्फ प्यार से उन्हें चच्चा कहा था
उनकी सफ़ेद दाढ़ी, सफ़ेद बाल, सर पर सफ़ेद टोपी 
बेदाग़ सफ़ेद कुरता पायजामा और सफ़ेद चप्पल 
ऊपर से निचे माशा अल्लाह सफ़ेद पोशाक में
चच्चा अल्लाह का भेजा हुआ दूत का सा प्रतिक हो रहा था 
जिन्होंने चंद मिनटों में मुझे ज़िन्दगी का सबसे बड़ा पाठ पढाया
सफ़र तो मेरा ऑटो का था
पर ये अनोखा सफ़र ज़िन्दगी का मेरे दिल में 
आज भी बार-बार झिंझोड़ कर रख देता है मुझे 


(इस सफ़र का बयाँ मैं हर शक्श के साथ बाँटता हूँ )


२६ सितम्बर २०१० 

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